सच्ची मित्रता का हो, हृदय से उद्गम,
घनेरी छाया जिसकी कल्पवृक्ष समान,
बाल मैत्री सी उमंग तरंग,
द्वेष का ना कोई स्थान ।
वर्तमान उत्कर्षपूर्ण,
भविष्य की मनमोहक कल्पनाएँ चित में अविराम,
सरलता और मधुरता जिसमें,
विश्वास है अडिग, प्रह्लाद और विष्णु समान ।
क्षण भर में लगती हृदय से बाते,
दूजे हि क्षण मनोमालिन्य करे,
दुग्ध क्षीर को विभाजित करे,
ऐसी मित्रता हंस के समान ।
ना उमर, ना जात-पात,
ना भेद भाव की हो खोखली बंदिशे,
पथ प्रदर्शक हो,
बने सारथी जीवन का कृष्ण समान ।
ना रहे कामना कुछ पाने की,
सहानूभुति रहे मित्रता में,
बने प्रेम का पात्र,
राधा कृष्ण सा प्रेम, राम हनुमान भक्ति समान ।
*कवित्री श्रीमती कीर्ति जिंदल*
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